Thursday, January 9, 2020

जहाज का सफर

एक दिन जहाज में जाने का सफर मिल गया,
मानो बहुप्रतीक्षित मौके का अवसर मिल गया |
मन ही मन में फूला नहीं समा रहा था,
हर आते जाते को किस्सा बता रहा था |
दो घंटे पहले पहुंचना पड़ गया,
पहचान पत्र दिखाना पड़ गया |
चेक इन काउंटर पर अजब मसला हो गया,
कुछ समझ नहीं आये गज़ब झमेला हो गया |
क्या बताएं सामान को हमसे जुदा कर दिया गया, 
दे के टिकट हाथ में किसी लम्बी सी पटरी पे पटक दिया गया |
हुई मन में घबराहट फिर तनिक सोचा,
बड़ी अचकचाहट के बाद उन महिला से पूछा |
महोदया मुझको जाना है जहाज से,
सामान भेज दिया आपने रेल यातायात से |
तुच्छ दृष्टि से देखते हुए कहा ऐसा कुछ नहीं होगा,
ना घबराएं आपका सामान आपके जहाज में ही होगा |
उसके बाद सुरक्षा वालों ने कुछ यूँ टटोल मारा,
हुई गुदगुदी छूटा हंसी का फब्बारा |
उसके बाद घुस गए हम जहाज के अंदर,
बड़ी प्रसन्नता हुई, हुआ जोर का अभिनन्दन |
सीना फूल उठा, हुआ गर्व अपनेआप पे,
जैसे मानो हम बहुत ही खासमखास हैं |
विनम्रतापूर्वक कुर्सी तक ले जाया गया,
पर तभी हमें पेटी से बांधा गया |
रहा नहीं गया कहा अब ये क्या बला है,
वो बोलीं श्रीमान इसमें आप ही का भला है |
नियमों के अनुसार ये आपके लिए जरूरी है,
बांधे रखेगी आपको और करती सुरक्षा पूरी है |
फिर अचानक जहाज चालक ने गति यूँ बढ़ाई,
बहुत जोर का शोर हुआ बड़ी तेज आवाज आयी |
उड़ने लगा जहाज गगन में,
कंपन होने लगा बदन में |
मन अनायास डरने सा लगा,
प्रभु का नाम जपने लगा |
विनती करूँ में बारम्बार,
मुझको देदो बाहर उतार |
गलती हो गयी अब कभी नहीं आऊँगा,
गाड़ी मिले ना मिले पैदल ही चला जाऊँगा |